ANAND
Star Cast :
Super Star Rajesh Khanna...... Anand Saigal/Jaichand
Amitabh Bachchan...... Dr. Bhaskar K. Bannerjee/Babu Moshai
Seema Deo...... Mrs. Suman Kulkarni
Sumitra Sanyal...... Renu
Ramesh Deo...... Dr. Prakash Kulkarni
Johny Walker...... Issabhai Suratwala/Muralilal
Lalita Pawar...... Matron D'Sa
Asit Sen...... Seth. Chandranath
Durga Khote...... Renu's Mother (Guest Appearance)
Dara Singh Randhawa...... Papaji (Head of man's gym)
Lalita Kumari...... Mrs. Sanyal
Atma Prakash...... Ranjeet
Dev Kishan
Savita
Gurnam
Moolchand...... Overweight Patient
Other Film Crew's :
Producer : Hrishikesh Mukherjee and N C Sippy
Director : Hrishikesh Mukherjee
Cinematography : Jaywant Pathare
Editor : Hrishikesh Mukhergee and Subhash Gupta
Screenplay : Hrishikesh Mukherjee and Bimal Dutt
Dialogue : Gulzar
Story / Writer : Hrishikesh Mukherjee
Color : Colour
Release Date : 1971
Genre : Family Drama
Introduction :
Anand (English: Bliss) is a 1971 Indian drama film
written and directed by Hrishikesh Mukherjee. It stars Rajesh
Khanna and Amitabh Bachchan in lead roles, with Khanna
playing the title role. The dialogues were written by Gulzar. The film
won several awards.
Summary :
The film begins with a felicitation ceremony arranged for Dr. Bhaskar (Amitabh
Bachchan) who has just written a book titled Anand. Bhaskar is a
cancer specialist and after the congratulatory speeches, he reveals that the
book is not a work of fiction but taken from his own diary and pertains to his
experiences with a real person named Anand.
In flashback, Bhaskar is shown as an honest and committed physician who is
happier dealing with genuine suffering than with the rich and their imagined
ailments. He is blunt to a fault and does not conceal a patient's true predicament
from him or her, regardless of the seriousness of the condition. Dr. Kulkarni,
his friend, introduces him to Anand (Rajesh
Khanna) who is dying from intestinal
cancer. Bhaskar is struck by Anand's good cheer and is shocked to learn
that Anand is aware of his true condition.
Anand and Bhaskar become fast friends and Anand decides to bring happiness
into Bhaskar's life. Bhaskar had once cured Renu (Sumita
Sanyal) of pneumonia. He fell in love with her but was unable to
propose to her. Anand decides to bring Renu and Bhaskar together, and the two
are together when Anand finally dies.
Production :
Anand was originally supposed to star famous Bollywood actors Kishore
Kumar and Mehmood in lead roles.
One of the producers, N.C. Sippy, had earlier served as Mehmood's production
manager. The character Babu Moshai was to be played by Mehmood. Mukherjee was
asked to meet Kishore Kumar to discuss the project. However, when he went to
Kishore Kumar's residence, he was driven away by the gatekeeper due to a
misunderstanding. Kishore Kumar (himself a Bengali)
had done a stage show organized by another Bengali man, and was involved in a
dispute with this man over financial matters. He had instructed his gatekeeper
to drive away this "Bengali", if he ever visited the house. The
gatekeeper misunderstood Mukherjee to be this "Bengali", and refused
him entry. The incident hurt Mukherjee and he decided not to work with Kumar.
Consequently, Mehmood had to leave the film as well, and new actors Rajesh
Khanna and Amitabh Bachchan, were signed up.
Film expert and musicologist Rajesh Subramanian says that the Hrishikesh
Mukherjee shot the film in 28 days.
The character of Anand was inspired by Raj Kapoor,
who used to call Hrishikesh Mukherjee "Babu Moshay".
It is believed that Mukherjee wrote the film when once Raj Kapoor was seriously
ill and Mukherjee thought that he may die. The film is dedicated to "Raj Kapoor
and the people of Bombay".
Later, Anand was remade in Malayalam, with the name Chitrashalabham
(which means butterfly), starring Jayaram and Biju Menon.
Awards :
National Film Awards :
- 1971: Best Feature Film in Hindi: Hrishikesh Mukherjee and N.C. Sippy
Filmfare
Awards :
- 1972: Best Film: Hrishikesh Mukherjee, N.C. Sippy
- 1972: Best Actor: Rajesh Khanna
- 1972: Best Supporting Actor: Amitabh Bachchan
- 1972: Best Dialogue: Gulzar
- 1972: Best Editing: Hrishikesh Mukherjee
- 1972: Best Story: Hrishikesh Mukherjee
आनंद
क्या फ़र्क हैं 70 साल और 6 महीने में| मौत तो एक पल हैं बाबुमोशाय| आने वाले 6 महीनो में जो लाखो पल मैं जीने वाला हूँ उसका क्या होगा बाबुमोशाय| ज़िंदगी बड़ी होनी चाहिए लंबी नही| हद कर दी| मौत के डर से अगर जीना छोड़ दिया, तो मौत किसे कहते हैं| बाबुमोशाय जब तक ज़िंदा हूँ तब तक मरा नही, जब मर गया साला मैं ही नही तो फिर डर किस बात का| ए बाबुमोशाय अपनी ज़िंदगी बड़ी हैं, लेकिन वक़्त बहुत कम हैं इसलिए जल्दी जल्दी जीना पड़ता हैं|
फिल्म के ये संवाद फिल्म की कहानी बयान करते है|
अगर आपको पता हो की आपकी जिंदगी कुछ ही दिनो/महीनो में ख़त्म होने वाली है तो आप अपनी बाकी जिंदगी कैसे बसर करेंगे? मरने के गम मे या फिर अपनी बाकी की जिंदगी हँसी खुशी बाँटने मे?
बॉलीवुड की सबसे एतिहासिक फिल्मों मे से एक है आनंद| हृषिकेश मुखेर्जी
की आनंद उन चंद फिल्मों मे से है जो आज 40 साल बाद भी दिल को छू जाती है| फिल्म दर्शाती है की किस तरह एक मरता हुआ आदमी महज प्यार और मज़ाक से पूरी दुनिया को खुशियाँ बाँट सकता है और उनका दिल जीत सकता है| हृषिकेश मुखेर्जी ने एक नये कलाकार अमिताभ बच्चन की जोड़ी उस वक़्त के बड़े अभिनेता राजेश खाना के साथ बनाई|
फिल्म कहानी है एक कॅन्सर पीड़ित रोगी आनंद(राजेश खन्ना) की जो जिंदगी को हंस खेल कर जीना चाहता है पर उसके पास समय बहुत कम है| फिल्म शुरू होती है एक साहित्य पुरस्कार वितरण समारोह से जिसमे लेखक भास्कर बेनर्जी(अमिताभ बच्चन) अपनी पुस्तक आनंद से पाठकों का आनंद से परिचय करवाते है| भास्कर एक गंभीर कॅन्सर चिकित्सक है जो पीड़ितों की सेवा करने मे विश्वास रखता है और देश की ग़रीबी और भूखमरी से दूखी है| उसे लगता है की वह एक रोगी का तो इलाज़ कर सकता है पर उनकी भूख और ग़रीबी का नही| ऐसे गंभीर डॉक्टर की मुलाक़ात होती है एक मजाकिया बक बक करने वाले रोगी आनंद से जो उसकी सोच और पूरी जिंदगी ही बदल देता है|
फिल्म का हर दृश्य अपने आप मे एक बात कह जाता है| फिल्म पूरी तरह से एक चिकित्सक
और उसके रोगी पर केंद्रित
रहती है| कहानी अपने उद्देश्य
से ज़रा भी नही हटती और इसके लिए हृषिकेश मुखेर्जी तारीफ़ के पात्र है| कहानी में राजेश खाना का मजाकिया किरदार और उसके बिल्कुल विपरीत अमिताभ का गंभीर किरदार देखने योग्य है|
जहाँ एक तरह फिल्म राजेश खाना के हँसी और मज़ाक का संदेश फैलाती है वही फिल्म एक चिकित्सक
के दृष्टिकोण
को भी ध्यान में रखती है| निर्देशक ने उस बेबसी और लाचारी को बेहतरीन तरीके से दर्शकों के सामने पेश किया है|
अभिनय की बात करे तो ऐसा ही जैसा हर किरदार उस अभिनेता के लिए ही लिखा गया हो| जहाँ राजेश खन्ना की मज़ाक,मस्ती और बक बक फिल्म में जान डाल देती है, वही नये अभिनेता अमिताभ बच्चन की गंभीर अदाकारी सराहनीय रही| फिल्म ख़त्म होने तक दर्शक आनंद के किरदार के साथ जुड़ जाते है और उसकी दशा से दयनीय महसूस करने लगते है| राजेश खन्ना जैसे बड़े कलाकार के होने के बावजूद अमिताभ अपनी अलग पहचान बनाने मे सफल रहे और एक महानायक बनने के पूरे संकेत दिए| इस फिल्म के लिए उन्हे फ़िल्मफ़ेयर
सर्वश्रेष्ठ सह-कलाकार का पुरस्कार
भी मिला| रमेश देव अपने किरदार में खूब जचे| सीमा देव का किरदार सीमित रहा पर वे भी अपनी छाप छोड़ने मे सफल रही|
फिल्म का संगीत सराहनीय है और कहानी को आगे बढ़ाता है| सभी गाने अपनी जगह जचते है और दर्शकों को बेहद पसंद आए है| ज़िंदगी कैसी है पहेली, कही दूर जब दिन ढल जाए 40 साल बाद भी दर्शकों को रास आते है| फिल्म के संवाद बेहतरीन है और दर्शकों को हसाने के साथ साथ मायूस भी कर जाते है| जगह जगह पर दिल को छू जाने वाले बोल है और निश्चित रूप से ये गुलज़ार के सबसे बेहतरीन कामों मे से एक है|
ऐसे विषयों पर काई फिल्में बनी है पर उनमे से कोई भी ऐसी नही है जो आनंद के आस पास भी आ सके| फिल्म को कम से कम एक बार देखना अनिवार्य है|
फिल्म के कुछ यादगार संवाद:
- जिंदगी और मौत उपरवाले के हाथ है जाःपनाह, जिसे ना आप बदल सकते है ना मैं| हम सब तो रंगमंच की कट्पुतलिया है, जिसकी डोर उपरवाले के हाथ बँधी है कब कौन कैसे उठेगा ये कोई नही जनता|
मौत तू एक कविता हैं
मुझसे इक कविता का वादा हैं
मिलेगी मुझको
डूबती नब्ज़ो में जब दर्द को नींद आने लगे
झर्द सा चेहरा लिए चाँद उफक तक पहुँचे
दिन अभी पानी में हो
रात किनारे के करीब
ना अंधेरा ना उजाला हो
ना आधी रात ना दिन
जिस्म जब ख़तम हो
और रूह को जब साँस
मुझसे इक कविता का वादा हैं
मिलेगी मुझको
- क्या फ़र्क हैं 70 साल और 6 महीने में| मौत तो एक पल हैं बाबुमोशाय| आने वाले 6 महीनो में जो लाखो पल मैं जीने वाला हूँ उसका क्या होगा बाबुमोशाय| ज़िंदगी बड़ी होनी चाहिए लंबी नही| हद कर दी| मौत के डर से अगर जीना छोड़ दिया, तो मौत किसे कहते हैं| बाबुमोशाय जब तक ज़िंदा हूँ तब तक मरा नही, जब मर गया साला मैं ही नही तो फिर डर किस बात का| ए बाबुमोशाय अपनी ज़िंदगी बड़ी हैं, लेकिन वक़्त बहुत कम हैं इसलिए जल्दी जल्दी जीना पड़ता हैं|
निर्देशक : हृषिकेश मुख़र्जी
निर्माता : हृषिकेश मुख़र्जी कलाकार : राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, रमेश देव, सीमा देव संवाद : गुलज़ार संगीत : सलिल चोधरी फिल्म रिलीज़ : 1971 |
Music Sound Track :
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The musical score for the film was composed by Salil
Chaudhary. The lyrics were written by Gulzar and Yogesh. Gulzar wrote the poem "Maut Tu Ek
Kavita Hai" which is narrated by Amitabh Bachchan.
Before confirming Chaudhary as the film's music director, Mukherjee
approached Lata Mangeshkar for the job as she had already
worked as a music director in Marathi
films under the pseudonym of "Anandghan". She, however, politely
refused the offer and decided to sing the songs in the film rather than
composing them.
S.No. Song Title
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Singer
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Lyricist
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1) Zindagi Kaisi Hai Paheli
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Manna Dey
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Yogesh
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2) Kahin Door Jab Din Dhal Jaaye
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Mukesh
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Yogesh
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3) Maine Tere Liye Hi Saat Rang Ke Sapne
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Mukesh
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Gulzar
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4) Na Jiyaa Lage Na
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Lata Mangeshkar
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Gulzar
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Although Kishore Kumar had become the voice of Rajesh Khanna since the
success of Aradhana, in this film, music director
Salil Choudhury insisted that Mukesh's voice would give the required pathos to
Anand's character. Rajesh Khanna readily agreed to the suggestion. Once when
asked which song was his favorite, Rajesh Khanna said it was Mukesh's song
`Kahin Door Jab din Dhal Jaye' from Anand.
1. Zindagi Kaisi Hai Paheli | |
Hindi Lyrics : ज़िन्दगी.कैसी है पहेली, हाय कभी तो हसाये कभी ये रुलाये ज़िन्दगी.कैसी है पहेली, हाय कभी देखो मन नही जागे पीछे पीछे सपनो के भागे एक दिन सपनो का राही चला जाए सपनो के आगे कहा ज़िन्दगी.कैसी है पहेली, हाय जिन्होने सजाये यहा मेले सुख-दुःख संग-संग झेले वही चुनकर खामोशी यु चली जाए अकेले कहा ज़िन्दगी.कैसी है पहेली, हाय कलाकार : राजेश खन्ना - अमिताभ बच्चन | |
2. Maine Tere Liye Hi Saat Rang Ke Sapne | |
Hindi Lyrics : मैने तेरे लिए ही सात रंग के सपने चुने, सपने, सुरीले सपने, कुछ हसी के, कुछ गम के, तेरी आंखो के साये चुराए रसीली यादो ने, मैंने तेरे लिए ही सात रंग के... छोटी बाते, छोटी छोटी बातो की है यादे बनी, भूले नही बिथि हुई एक छोटी घडी, जनम जनम से, आंखे बिछाये, तेरे लिए इन राहो मे, मैंने तेरे लिए ही सात रंग के... भोले भले, भोले भले दिल को बहलाते रहे, तन्हाई मे तेरे ख्यालो को सजाते रहे, कभी कभी थो, आवाज़ देकर, मुझको जगाया ख्वाबो ने, मैंने तेरे लिए ही सात रंग के... रूठी राते, रूठी हुई रातो को जगाया कभी, तेरे लिए बिथि सुबह को बुलाया कभी, तेरे बिना भी, तेरे लिए ही, दिए जलाये रातो मे, मैंने तेरे लिए ही सात रंग के... कलाकार : राजेश खन्ना - अमिताभ बच्चन 3. Kahin Door Jab Din Dhal Jaaye
Hindi Lyrics : कही दूर जब दिन ढल जाए…. (कही दूर जब दिन ढल जाए सांझ की दुल्हन बदन चुराए चुपके से आए) -2 मेरे ख़यालो के आँगन मे कोई सपनो के दीप जलाए, दीप जलाए.. कही दूर जब दिन ढल जाए सांझ की दुल्हन बदन चुराए चुपके से आए.. (कभी यूही जब हुई बोजल साँसे, भर आई बैठे बैठे जब यूही आँखे) -२ कभी मचल के प्यार से छल के छुए कोई मुझे पर नज़र ना आए,नज़र ना आए, कही दूर जब दिन ढल जाए सांझ की दुल्हन बदन चुराए चुपके से आए (कभी तो ये दिल कही मिल नही पाते, कहीं से निकल आए जनमो के नाते) -२ ठनी थी उलझन बैरी अपना मन अपना ही होके सहे दरद पराए, दरद पराए, कही दूर जब दिन ढल जाए सांझ की दुल्हन बदन चुराए चुपके से आए कलाकार : राजेश खन्ना - अमिताभ बच्चन |
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